शहर की चुदक्कड़ बहू-5

बहू ने साड़ी उतारने के बाद अपना पेटीकोट उतारा. मैंने देखा कि उसने नीचे कच्छी भी नहीं पहनी थी. बहू ने फिर ब्लाउज उतारा. ब्लाउज के नीचे उसने जाली वाली ब्रा पहनी थी.

कहानी का पिछला भाग: शहर की चुदक्कड़ बहू-4

थोड़ी देर में बहू बाहर आयी तो मेरी तो आँखें और लंड दोनों बाहर आने को होने लगे.
मेरी बहू ने एक पीले रंग की साड़ी पहनी थी और पीले रंग का ही ब्लाउज!
और साड़ी बहू ने इतनी नीचे बंधी थी कि बस थोड़ा नीचे और हो जाये तो बस बहू की झांटें दिेखने लगे.

बहू के ब्लाउज में उसके बूब्स की लाइन दिेख रही थी. उस टाइम बहू मुझे कामुकता की देवी लग रही थी. बड़े बूब्स … इतनी सेक्सी कमर और कमर पर पड़ते वो बल! कमर में पड़ी चैन और उसकी गहरी नाभि में पड़ा वो छल्ला … मन कर रहा था कि यहीं कपड़े फाड़ के अपनी बहू को चोद दूँ.

फिर बहू ने स्कूटी निकाली.
बहू बोली- बैठो डैडी जी.
मैंने कहा- बहू स्कूटी तुम चला लोगी?
बहू बोली- हाँ डैडी जी.

फिर बहू और मैं शॉपिंग करने निकल गए.

रास्ते पर चलता हर आदमी बहू को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था और मेरा ध्यान भी मेरी मेरी बहू की चिकनी कमर पर था. मन कर रहा था कि पकड़ लूं. मगर मन में थोड़ा डर लग रहा था.
तभी बहू बोली- डैडी जी, पकड़ के बैठना.
मैंने कहा- बहू मैं पकड़ के ही बैठा हूँ.

बहू स्कूटी काफी अच्छी स्पीड पर चला रही थी और दिल्ली का ट्रैफिक तो सब जानते ही हैं. जिससे बहू को बार बार स्कूटी रोकनी पड़ती थी. मैंने सोचा क्यों न इस चीज का फायदा उठा लूं.
तो जब इस बार बहू ने फिर से गाड़ी रोकी तो मैंने अपने हाथ बहू की कमर पर लगा दिए और उसकी कमर जोर से पकड़ ली.

बहू बोली- डैडी जी, आराम से पकड़ लीजिये, यहाँ बहुत ट्रैफिक होता है.
मैं जानता था कि मेरी बहू मुझे उकसा रही है. और सच कहूँ तो मैं भी यही चाहता था.

फिर मैंने अपने हाथ बहू कमर पर ही रखे और उसकी कमर को पूरी रास्ते सहलाता रहा जिससे मेरा लंड महाराज भी जाग गये थे. फिर मैं और बहू एक मॉल में गए जहाँ से काफी सामान ख़रीदा.
सामान के बैग मेरे पास थे.

और फिर जब हम वापस आने के लिए लिफ्ट में घुसे तो एकदम से बहुत सारे लोग लिफ्ट में आ गए. और बहू और मैं बिल्कुल पीछे चले गए. बहू मेरे आगे खड़ी थी और मैं उसके पीछे!
तभी कुछ और लोग भी आ गए लिफ्ट में. जिससे लिफ्ट पूरी भर गयी और बहू मुझसे बिल्कुल चिपक गयी. मैंने अपना हाथ बहू की कमर में डाला और उसे पकड़ लिया.
बहू बोली- डैडी जी, आज भीड़ ज्यादा है यहाँ, वैसे इतनी भीड़ नहीं होती है.

मैंने कहा- बस थोड़ी देर की बात है.
मैं बहू की कमर को सहलाता रहा और अपना लंड उसकी गांड में लगा के रखा.
बहू भी अपने ससुर की इस हरकत का मज़ा ले रही थी और मुझे कुछ नहीं बोल रही थी.
लिफ्ट में हमें कुछ मिनट ही लगे मगर इन कुछ मिनट में बहुत मज़ा आया.

फिर हम दोनों पार्किंग में आ गए तो बहू बोली- डैडी जी, अब आप स्कूटी चला लो.
मगर मैं बहू के साथ और मज़ा करना चाहता था शायद बहू भी इस बात को जानती थी इसीलिए वो मुझे चिड़ा रही थी.

मैंने कहा- कार होती तो मैं चला लेता. मगर ये स्कूटी तो तुम ही चलाओ.
फिर पूरे रास्ते मैंने बहू की कमर को सहलाया और घर आकर मैं अपने रूम में चला गया. मैंने अपने कपड़े उतारे तो मेरे कच्छे में मेरा काफी प्रिकम निकल गया था और लंड भी काफी गीला था.
तभी मैंने देखा कि बहू अंदर ही देख रही है. तो मैं अपना लंड उसे दिखा कर हिलाने लगा. मगर अपना पानी नहीं गिराया.

फिर मैं कपड़े पहन के बाहर आ गया. वहां देखा तो बहू कोल्ड ड्रिंक पी रही थी.

तभी बहू बोली- डैडी जी, मैं कपड़े बदल लूं. फिर खाना निकालती हूँ.
बहू अपने कमरे में चली गयी.

मैं भी उसे कपड़े बदलते देखना चाहता था तो मैंने अपनी आँख कीहोल पर लगा दी. अंदर बहू अपनी साड़ी खोल रही थी. साड़ी उतारने के बाद उसने अपना पेटीकोट उतार दिया.
मैंने देखा कि बहू ने पेटीकोट के नीचे कोई कच्छी भी नहीं पहनी थी.

बहू ने फिर अपना ब्लाउज उतार दिया. ब्लाउज के नीचे उसने एक पीले रंग की जाली वाली ब्रा पहनी थी. क्या गजब ढा रहे थे उसके बूब्स.

फिर बहू बैड पर लेट गयी और बगल वाली दराज से वो नकली लंड निकाल के अपनी चूत में डाल लिया और जल्दी जल्दी अंदर बाहर करने लगी.
कुछ ही देर में बहू का पानी निकल गया और वो कपड़े पहन के बाहर आ गयी.

फिर हमने खाना खाया फिर आराम किया. और सारा दिन ऐसे ही निकल गया.

अगले दिन मैं रानी का इंतज़ार कर रहा था. मैंने देखा मेरा बेटा ब्रेकफास्ट करके जा रहा है मगर बहू नहीं दिखाई दी.
मैंने बेटे से पूछा- बहू आज जिम नहीं जा रही है?
तभी बहू बाहर आयी और बोली- नहीं डैडी जी, बस मन नहीं है.

मुझे थोड़ा बुरा लगने लगा क्योंकि आज रानी की चुदाई नहीं कर पाऊंगा.
तभी बहू बोली- डैडी जी, मैं यही थोड़ी बहुत एक्सरसाइज कर लेती हूँ.

फिर बहू अपने रूम में चली गयी और थोड़ी देर में वही कपड़े पहन के वापस आयी जिसमें मैंने बहू को पहली बार देखा था. वही छोटा सा निक्कर और स्पोर्ट ब्रा!
मेरा तो लंड पूरा खड़ा हो गया था.

बहू एक्सरसाइज करती तो उसके बूब्स देखकर मेरा लंड फटने को होने लगता. मैं वही बैठ के पजामे के ऊपर से से अपना लंड मसल रहा था.

तभी रानी आई और बहू को घर पर देखकर उसका भी मन ख़राब हो गया. फिर रानी अपना काम करने लगी. मगर मेरा लंड पागल हो रहा था और बहू मुझे और ज्यादा तड़पा रही थी.
मैंने सोचा कि क्यों न बहू को भी तड़पा दूँ. मैंने रानी से कहा- रानी, पहले मेरा रूम साफ़ कर दे.
रानी बोली- ठीक है बाबूजी.

जैसे ही रानी मेरे कमरे में गयी, मैं सोफे से उठ के अंदर जाने लगा तो बहू मुझे ही देख रही थी. तभी मैंने ध्यान दिया कि मेरे पाजामे में मेरा लंड पूरा दिख रहा है मगर मैंने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया और अंदर चला गया,

मैं जानता था कि बहू जरूर देखेगी, अंदर जाते ही मैंने रानी को अपनी बांहों में पकड़ लिया.
रानी बोली- बाबूजी, आपकी बहू यही है. पागल हो गए हो क्या?
मैंने रानी से कहा- वो कल से मुझे तड़पा रही है. अभी भी वो यही कर रही है. अब मेरी बारी है.
रानी बोली- फिर भी बाबूजी, कहीं वो मुझे निकाल न दे.
मैंने कहा- हो सकता है. मगर मैं उसे आज पक्का चोदूँगा और तुझे कोई नुकसान नहीं होगा.
रानी मेरी बात मान गयी.

मैं और रानी किस करने लगे और कुछ सेकंड में हम दोनों नंगे थे. रानी नीचे बैठकर मेरा लंड चूसने लगी.

मेरा अब बहुत मन हो रहा था चुदाई का … तो मैंने रानी को बैड पर लिटा दिया. मैंने उसकी चूत में लंड डाल दिया और चुदाई शुरू कर दी.

कुछ टाइम बाद रानी मेरे लंड पर बैठ गयी और उछलने लगी. तभी मेरी नज़र दरवाजे पर पड़ी जहाँ से बहू हम दोनों को देख रही थी. मगर मैं चुदाई करने में लगा था.
तभी बहू और मेरी नज़र एक दूसरे से मिली. मगर मैं फिर भी नहीं रुका और चुदाई जारी रखी.

अब बार बार मैं बहू को देखता और वो मुझे देखती.

20 मिनट की चुदाई के बाद मेरा पानी निकल गया और मैंने कंडोम निकल के साइड में ही रख दिया.
तभी रानी बोली- बाबूजी, आपकी बहू ने पूरी चुदाई देखी है. बस आज आप अपना काम कर लेना!
मैंने कहा- तभी तो उसको चुदाई दिखाई है.

फिर पहले मैं कपड़े पहन के बाहर निकला. मैंने देखा बहू वही एक्सरसाइज कर रही थी.
कुछ देर में रानी बाहर आयी. उसके बाल और कपड़े देखकर कोई भी समझ सकता था कि उसकी अभी एक जोरदार चुदाई हुई है.
फिर रानी ने अपना सारा काम किया और चली गयी.

रानी के जाने के बाद मैंने बहू को देखा तो उसकी आँखों में मुझे गुस्सा दिखाई दिया.

फिर बहू ने नहा धोकर मुझे ब्रेकफास्ट दिया मगर खुद का ब्रेकफास्ट नहीं लायी.
तो मैंने कहा- बहू तुम्हारा नाश्ता कहाँ है?
बहू बड़े रूखे मन से बोली- मुझे नहीं खाना है.
मैं समझ गया कि बहू नाराज हो गयी.

मैं नाश्ता करके टीवी देखने लगा और बहू अपने रूम में चली गयी. उसके बाद बहू ने मुझसे कोई बात नहीं की.

बहू जब दोपहर का खाना बना रही थी तब भी वो बहुत गुस्से में थी.
मैंने कहा- बहू खाना बन गया तो लगा लो, दोनों साथ में खाते है.
बहू बहुत गुस्से में बोली- डैडी जी, मुझे कुछ नहीं खाना है, आप निकाल के खा लो.

यही मेरे लिए सही टाइम था. मैंने एक प्लेट में खाना निकाला और बहू के रूम में गया.

मैंने देखा कि बहू लेटी हुई है वही टॉप पहनके और उसकी जाँघें दूध की तरह चमक रही हैं.

मैं बहू के पास बैठ गया और बोला- बहू खाना खा लो.
बहू मुझसे बात नहीं कर रही थी. मैंने उसकी जाँघों पर हाथ रखा तो बहू ने मेरी तरफ देखा.
मैंने कहा- बहू, बात क्या है खाना क्यों नहीं खा रही हो?
बहू बोली- मुझे आपसे बात नहीं करनी है.

मैंने कहा- बहू, जो तुमने देखा उसी वजह से तुम खाना नहीं खा रही हो?
बहू बोली- डैडी जी, आपको शर्म नहीं आती एक काम वाली के साथ ये सब करते हुए?
मैंने कहा- बहू, मेरी कुछ जरूरतें हैं.
बहू बोली- तो आपको मम्मी के साथ करना चाहिए.

मैंने कहा- बहू, तेरी सास तो मुझे कई सालों से पास नहीं आने देती है. इसलिए मुझे बाहर ही करना पड़ता है.
बहू बोली- तो क्या आप गाँव में भी किसी औरत के साथ करते हैं?

मैंने कहा- बहू इस शरीर की जरूरत के आगे झुकना ही पड़ता है. और हां, गाँव में भी मेरी है कोई! मगर ये बात किसी को मत बताना.

बहू मेरी बातों को बहुत ध्यान से सुन रही थी जैसे कि मैं उसकी सहेली हूँ. मैं भी बहू की जाँघों को रगड़ रहा था.

तब बहू मुझसे पूछने लगी- डैडी जी, गांव में कौन है वो औरत? क्या मैं उसे जानती हूँ?
मैंने कहा- बताऊंगा बहू, तुम्हें बता दूंगा. पहले खाना खा लो तुम.

फिर मैंने और बहू ने उसके रूम में खाना खाया.

और उसके बाद बहू बर्तन रखकर वापस आयी, बोली- अब बताओ डैडी जी, कौन है वो औरत?
मैंने कहा- बहू, बस ये बातें किसी को पता नहीं चलनी चाहियें.
बहू बोली- डैडी जी, मैं किसी को नहीं बताऊंगी.

मैंने कहा- बहू उसका नाम है शालिनी!
बहू बोली- वही न जो अपने घर से थोड़ा दूरी पर रहती है?
मैंने कहा- हाँ बहू वही!
बहू बोली- डैडी जी, वो तो काफी जवान है अभी. तो अपने उसे कैसे पटा लिया?
मैंने कहा- बहू, हर चीज का सही टाइम होता है. सही टाइम पर मैंने सही दांव खेला और वो मेरी हो गयी.
बहू बोली- मानना पड़ेगा डैडी जी आपको! आप तो बड़े छुपे रुस्तम निकले.
मैं बहू की जांघें सहलाये जा रहा था और बहू को देखकर लग रहा था वो भी गर्म हो रही थी.
बहू बोली- डैडी जी, रानी को कब पटा लिया आपने?
मैंने कहा- जब यहाँ आया था उसके अगले दिन बाद मैंने उसे 1000 रुपये दिए और वो मान गयी.

बहू बोली- डैडी जी, वैसे थोड़ा संभल कर … एड्स का खतरा ज्यादा होता है ऐसी लेडीज से.
मैंने कहा- बहू, इसीलिए मैं शरीफ घर की औरतों के साथ ही करता हूँ.

बहू बोली- डैडी जी, मैंने कभी सोचा नहीं था आप इस उम्र में भी इतने रंगीन मिजाज होंगे.
मैंने कहा- बहू, सिर्फ सर के बाल सफ़ेद हुए हैं, जवानी अभी भी लड़कों वाली है.

बहू हंसने लगी.

कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का अगला भाग: शहर की चुदक्कड़ बहू-6



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